पर्यावरण पर लॉकडाउन के प्रभाव पर निबंध | Effect of lockdown on Environment Essay in Hindi
नमस्कार, मेरे प्रिय मित्र, इस पोस्ट में “पर्यावरण पर लॉकडाउन के प्रभाव पर निबंध” हम एक निबंध के रूप में Effect of lockdown on Environment Essay in Hindi के प्रभाव के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे।
पर्यावरण पर लॉकडाउन के प्रभाव पर निबंध-Effect of lockdown on Environment Essay in Hindi
पर्यावरण प्राकृतिक दुनिया का एक रूप है, जो हमें चारो और से घेर कर रखता है। जीवन के अस्तित्व के लिए एक अच्छे वातावरण की एक आवश्यकता सदैव रहती है। COVID-19 के शुरू होने से पहले, हमारा पर्यावरण एक काफी दूषित होता दिखाई दे रहा था।
ग्रीनहाउस गैसों के कारण हमारे आस-पास की हवा सांस लेने के लिए बहुत जहरीली हो गई थी। पृथ्वी को ग्लोबल वार्मिंग का सामना करना पड़ा जो बदले में ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्र के स्तर में वृद्धि का कारण बनने लगा था।
पृथ्वी को पर्यावरणीय गिरावट, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, ओजोन परत की कमी और प्रदूषण का भी सामना किया।
कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण कई देशों ने लॉकडाउन प्रक्रियाओं को अपनाया था जिससे लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने से रोक दिया गया था। जिससे पर्यावरण में काफी सुधार देखा गया था।
इसके अलावा जानवरों को खुलेआम विचरण करते देखा गया है जहाँ एक बार वे जाने की हिम्मत नहीं कर सकते थे। पौधों की वृद्धि अच्छी होती दिखाई देने लगी, कुदरत में मानवीय हस्तक्षेप कम हो गए थे ।
हवा इतनी साफ हो गई है कि पंजाब में (जालंधर) से 180 किलोमीटर दूर हिमालय की पहाड़ियां नजर आने लगी थी।
नाइट्रोजन-डाइ-ऑक्साइड एक जहरीली गैस है जिसका उपयोग ऑटोमोबाइल इंजन, बसों, ट्रक से, कारखाने से निकलता था। जिससे हवा साफ हो गई थी, पानी साफ हो गया और प्रदूषण का स्तर कम हो गया था।
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WHO का लॉकडाउन पर पर्यावरण पर विचार
(विश्व स्वास्थ्य संगठन) WHO का कहना है कि अगर यह गैस (नाइट्रोजन-डाइ-ऑक्साइड) 200 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर से अधिक हो जाती है, तो यह आपके श्वास नली में बहुत बड़े पैमाने पर सूजन पैदा कर सकती है।
जिससे अस्थमा जैसी समस्या हो सकती है और अब यह Particulate matter(PM) 2.5 (PM 2.5) वायु प्रदूषण के सबसे हानिकारक रूपों में से एक है।
यह कार्सिनोजेन समूह में शामिल है और यह इतना छोटा है कि यह आपके फेफड़ों से आपके रक्तप्रवाह में यात्रा कर सकता है जिससे न केवल श्वसन संबंधी समस्याएं होंगी बल्कि दिल का दौरा भी पड़ेगा और मृत्यु भी हो सकती है।
WHO का अनुमान है कि (PM 2.5) के कारण दुनिया भर में 4 मिलियन से अधिक लोग मारे जाते हैं, जैसे- हृदय रोग, फेफड़े का कैंसर, स्ट्रोक आदि।
लॉकडाउन के चलते दुनियाभर में (PM 2.5) का स्तर भी कम हो गया था यही मुख्य कारण है कि, उन नों, आप पूरे देश में साफ नीला आकाश देख सकते थे । सिर्फ हवा ही नहीं, हमारी नदियों का पानी भी साफ होता जा रहा था।
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भारतीय विशेषज्ञों का लॉकडाउन पर पर्यावरण पर विचार
दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष (राघव चड्ढा) का कहना था, कि औद्योगिक कचरे के बंद होने से यमुना नदी के पानी की गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
BHU राज्यों में IIT के प्रोफेसर डॉ. पीके मिश्रा का कहना है कि गंगा के पानी की गुणवत्ता में 40-50 फीसदी सुधार देखा गया था ।
अगर सरकार सही तरीके से सीवेज ट्रीटमेंट प्लेन्स का निर्माण करे और कंपनियों और उद्योगों को अपने कचरे का खुद उपचार करने के लिए कड़े नियम बनाए और इस नियम का पालन करना जरूरी हो तो ऐसा हो सकता है और हमारी नदियां हर बार ऐसी ही दिखाई दे सकती हैं।
कार्बन डाई ऑक्साइड जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है। दुनिया भर में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कहां से हो रहा है, इसके आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि इसमें परिवहन क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है।
लॉकडाउन के दौरान हर तरह के प्रदूषण में गिरावट आई थी। कम संख्या में कारें, मोटरें और साथ ही वाहन चल रहे थे। तो, कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के उत्सर्जन में भी कमी आई थी।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में यह लगभग 5% की सबसे बड़ी गिरावट है।
जब अर्थव्यवस्था दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, तो यह पर्यावरण के लिए अच्छी खबर है या हम कह सकते हैं कि पर्यावरण सार्वभौमिक रूप से अर्थव्यवस्था के समानुपाती है।
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था जीवाश्म ईंधन से अत्यधिक जुड़ी हुई है, कोयला, पेट्रोलियम, तेल, और ऊर्जा के अन्य सभी गैर-नवीकरणीय रूप ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत हैं जो परिवहन क्षेत्र, विनिर्माण उद्योग को चलाते हैं, बिजली उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं। यही कारण है कि जब ट्रांसपोर्ट उद्योग ठप हो जाता है तो कार्बन उत्सर्जन कम होता है।
जब दुनिया भर में बिजली की मांग गिरती है, तो कार्बन उत्सर्जन कम होता है और अंत में यही कारण है कि जब लॉकडाउन हटा दिया जाता है और दुनिया फिर से “सामान्य” हो जाती है। फिर इस समय कार्बन उत्सर्जन और जनसंख्या फिर से ऊपर आ चुकी है।
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सारांश
लॉकडाउन से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव (Effect of lockdown on Environment Essay in Hindi) पड़ा था। पर्यावरण की रक्षा के महत्व को समझने और उस दिशा में काम करने का समय है।फिर इस समय कार्बन उत्सर्जन बढ़ चुका है, लोग को कोरोना का भय अब पूरी तरह से निकल चुका है, हवा फिर से दूषित हो चुकी है कोरोना ने हमेशा ये सीखा दिया की किस तरह प्रदूषण न होने पर धरती कितनी सुन्दर दिखाई देने लगी थी और साथ कम संसाधनों में भी जिया जा सकता है।
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Frequently Asked Questions (FAQs)
Q.1 भारत में पहली बार लॉकडाउन कब शुरू हुआ था।
Ans :- भारत में पहली बार लॉकडाउन 22 मार्च 2020 से शुरू हुआ था।
Q.2 भारत में कितनी बार लॉकडाउन लगा था ?
Ans:- भारत में लॉकडाउन 2020 और 2021 में लगा था ?
Q.3 कोरोना वायरस की कौन से क़िस्म ने विश्व भर में आतंक मचाया था ?
Ans:- Covid-19