Makar sankranti kyon mnaya jata hai in Hindi 2023 | मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?
Makar sankranti kyon mnaya jata hai in (Hindi ) :- मकर संक्रांति हिंदू धर्म का सबसे अहम पर्व है, इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है, 2023 में मकर संक्रांति शनिवार को है।
भारत एक ऐसा देश है, जहां पर लगभग प्रत्येक वर्ष 2,000 से अधिक त्योहार मनाए जाते हैं, साल का हर दिन किसी न किस त्यौहार, विज्ञानं, इतिहास या स्वास्थ्य से जुड़ा होता है, वैज्ञानिक तौर से जुड़े कोई न कोई किस से अवश्य मनाए जाते हैं।
मकर संक्रांति को भारत के साथ नेपाल, श्रीलंका जैसे देशो में भी में मनाया जाता है, हिंदू कैलेंडर के महीने के हिसाब से पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है, तब इस पर्व को मनाया जाता है प्रतिवर्ष 14 या 15 जनवरी के दिन संक्रांति आती है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है।
दक्षिण भारत में तमिलनाडु इसे पोंगल के नाम से मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में इसे सिर्फ संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति को कई जगह अलग-अलग नामों से भी कहा जाता है 14 जनवरी के बाद सूरज उत्तर दिशा की ओर अग्रसर हो जाता है।
इसलिए ऐसा कहते हैं कि फिर से सूरज का हर छह माह पर निरंतर दक्षिण से उत्तर की ओर रुख बदलता रहता है एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो कि मकर संक्रांति के दिन ही होती है।
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Makar sankranti Date (2023) कब है।
मकर संक्रांति 2023 में 15 जनवरी, रविवार को है।
मकर संक्राति 2023 पूजा मुहूर्त (Makar sankranti 2023 Shubh Muhurt)
हिंदी कैलेंडर और पंचांग के मुताबिक साल 2023 में सूर्य मकर राशि में 15 जनवरी को पधार रहे है, इसलिए मकर संक्रांति 2023 15 जनवरी , रविवार के दिन है।
मकर संक्रांति 2023 तिथि | 15 जनवरी 2023 |
पुण्य काल मुहूर्त | 07:15:13 से 12:30:00 तक |
अवधि | 5 घंटे 14 मिनट |
महापुण्य काल मुहूर्त | 07:15:13 से 09:12:13 तक |
अवधि | 02 घंटे 0 मिनट |
संक्राति आरंभ | 14 जनवरी 20:21:45 |
मकर संक्रांति क्या है-
सूरज के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है, एक संक्रांति से दूसरे संक्रांति के बीच का समय सौर मास कहते है,वैसे तो सूर्य संक्रांति लगभग 12 है, लेकिन इनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण मानी जाती है मेष, कर्क, तुला, और मकर।
मकर संक्रांति सबसे शुभ माना जाता है शुभ मुहूर्त में स्नान, दान पुण्य का विशेष महत्व होता हैं, मकर संक्रांति के पावन अवसर पर लोग तिल और गुड़ अपने शरीर में लगाकर नर्मदा नदी में स्नान करना लाभदाई मानते हैं।
इसके बाद संक्रांति दान में गुड़, तेल, कंबल, फल, छाता, वस्त्र आदि दान करके भी लाभ प्राप्त करते हैं 14 जनवरी को प्रतिवर्ष धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है इसलिए सूरज दक्षिण के बजाय उत्तर की ओर निगमन करने लग जाता है यदि सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करने लगे तब उसकी किरण विषैली मानी जाती हैं।
मकर संक्रांति के अन्य नाम- Makar sankranti different names in Hindi
जगह का नाम | मकर संक्रांति के अन्य नाम |
दिल्ली | मकर संक्रांति |
बिहार | तिल संक्रांति |
उत्तर प्रदेश | खिचड़ी पर्व |
गुजरात | उत्तरायण पर्व |
आंध्र प्रदेश | संक्रांति |
तमिलनाडु | पोंगल |
केरल | संक्रांति |
पश्चिम बंगाल | गंगा सागर मेला |
असम | बिहू भोगली |
राजस्थान | उत्तरायण पर्व |
बांग्लादेश | शक्रैन/ घुरी उत्सोब |
नेपाल | माघी संक्रांति, खिचड़ी पर्व |
थाईलैंड | सोंगकरन |
लाओस | पि मा ला ओ |
म्यांमार | थियान |
कम्बोडिया | मोहा सांगक्रान |
श्रीलंका | पोंगल, उझवर तिरुनल |
कश्मीर | शिशुर सेंक्रांत |
पाकिस्तान | तिर्मूरी |
मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?-Makar sankranti kyon mnaya jata hai in Hindi
हिंदू धर्म में हर त्योहार के पीछे कोई ना कोई कहानी जरूर होती हैं। मकर संक्रांति के पीछे भी कई सारी ऐसी पौराणिक कथाएं है, कहा जाता है।
शनि और सूर्य में बैर
शनि माता छाया पर अपने पिता के दुर्व्यवहार से हमेशा कुपित रहते थे एक बार सूर्यदेव और शनि की माता छाया में किसी बात पर विवाद हो गया जिसमे क्रोधित होकर सूर्यदेव ने माता छाया को कटु वचन बोल दिए ये देख शनि ने पिता सूर्यदेव पर अपनी दृष्टि के प्रभाव से कुष्ठ रोग से पीड़ित कर दिया।
पिता को पीड़ित देख पुत्र यमराज काफी दुखी हुए उन्होंने सूर्य देव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए शनि को मानाने का बहुत प्रयास किया परंतु शनि ने यमराज की एक न सुनी यह देखकर सूर्य देव क्रोधित हो उठे और शनि को भस्म करने लगे माता छाया और यमराज ने अपने सौतेले भाई शनि को कष्ट में देखकर सूर्य देव को शांत रहने की प्रार्थना की काफी देर समझाने के बाद सूर्य देव शांत हुए।
तबतक शनि का पूरा घर जलकर रख हो गया , सूर्यदेव भी अपने कार्य से दुखी हुए इसके बाद शनि और माता छाया को और उन्होंने मकर के घर में रहने को कहा कि और वचह्न दिया की वह शनि से मिलने प्रतिवर्ष मकर के घर में आएंगे और शनि के घर को धन्य धन्य से भर देंगे।
इसके बाद शनि ने मकर के घर में सूर्यदेव के साथ प्रवेश किया तभी से मकर संक्रांति का त्यौहार प्रति वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाने लगा।
भीष्म पितामह की मृत्यु का दिन
महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था युद्ध के दौरान जब पितामह भीष्म पांडवों की सेना को ध्वस्त करने में जुटे थे तब कृष्ण द्वारा शिखंडी को सामने कर दिया गया था धमाने शिखंडी के सामने भीष्म ने शस्त्र त्यागने का वचन लिया था।
इस अवसर पर कृष्ण द्वारा आदेश देने पर अर्जुन ने पितामह भीष्म को बाणों की शैया पर लेटा दिया लेकिन उन्होंने अपने प्राण नहीं गवाएं थे गए थे बाणो की सेज पर लेटे हुए भीष्म ने अपने प्राण त्यागने के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा में थे जैसे ही उत्तरायण आया उस समय उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए ये उत्तरायण मोक्ष की प्राप्ति के लिए होता है। इसलिए लोग इस दिन अपने पूर्वज को मोक्ष की प्राप्ति के लिए पूजा करते है।
मकर संक्रांति पर भागीरथ की कथा
इससे जुड़ा एक और पुराण इस प्रकार की है, कि जब राजा सागर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान कर अपने अश्व को विश्व विजय प्राप्त करने के लिए बढ़ा दिया, जब इंद्रदेव को इस बारे में पता चला तब उन्होंने छल से अश्व को पकड़कर कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
राजा सागर को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो वह अपने 60 हजार पुत्रो को लेकर कपिल मुनि के आश्रम पर युद्ध करने के लिए पहुंच गए यह देख कपिल मुनि क्रोधित हो गए और राजा सागर के 60 हजार पुत्रो वही भस्म कर उनकी आत्मा को आजीवन धरती लोक में भटने को छोड़ दिया।
उसके बाद राजा सागर ने कपिल मुनि के आश्रम से विनती करते हुए अपने पुत्रो के उद्धार का मार्ग पूछा। जिसपर कपिल मुनि ने कहा कि उनके श्राप का असर गंगाजल से टूट सकता है, यदि आप अपनों का उद्धार चाहते हो तो स्वर्ग से गंगा नदी को धरती पर ले आओ।
कपिल मुनि की बात सुनकर राजा सागर विस्मित हो गए और गंगा मैया को धरती पर लाने के लिए राजा ने कठोर तपस्या की तपस्या में अपनी जान भी दे दी उसके बाद उनके तीन से चार पीढ़ियों तक चलता ये तपस्या चलती रही।
राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा धरती पर आने के लिए मान गयी परन्तु उन्होंने भगीरथ से कहा उनके तेज प्रवाह से धरती नष्ट हो सकती है। जिससे भगीरथ चिंतित हो गए और जिसपर माँ गंगा ने उन्हें भगवान् शिव से सहायता लेने को कहा।
भागीरथ ने तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया शिवजी ने अपनी जटाओ में गंगा के तीव्र प्रवाह को संभाल लिया धीरे-धीरे धरती पर प्रवाहित करने का संचालन करवाया।
गंगा को भागीरथ मार्ग दिखाते हुए कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंचे और वहां अपने पूर्वजो का उद्धार किया इस तरह भागीरथ की मनोकामना पूरी हो जाती है, जिस दिन से पधारी उस दिन मकर संक्रांति था तभी से मकर संक्रांति का स्नान करने के प्रति आस्था शुरू हुई जो सदियों से चलती आ रही है इस दिन भगवान शिव की कृपा अपने घर लाना चाहते हैं, तो घर में शिवलिंग के स्थापना करें और जलाभिषेक कर उन्हें गंगाजल से नहलाये ताकि बुरी शक्तियां आप के समीप न आ सके।
मकर संक्रांति पर भगवान विष्णु की कथा
हिंदू धर्म की मान्यताएं तो यह भी कहती है, कि जब भगवान विष्णु ने धरती से असुरों का संहार करना शुरू किया तो उनके सिरों को मंदरा नामक पर्वत पर गाड़ दिया तब से भगवान विष्णु को असुरा को नाश करने की ख़ुशी में मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है भगवान विष्णु के जीत का प्रतीक माना जाता है
वैज्ञानिक आधार पर मकर संक्रांति मनाने की वजह
मकर संक्राति का वैज्ञानिक कारण ये है की, इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाता है, जिससे मौसम में बदलाव शुरू होने लगता है, भीषण ठंड से पीड़ित लोगो को सूर्य के उत्तरायण होने से राहत मिलती है।
खेतो में रबी फसल चना, गेंहू, गन्ना, मूंगफली, उड़द आदि की कटाई शुरू हो जाती है। इसलिए मकर संक्रांति में रबी की फसलों के आनद के रूप में मनाया जाता है।
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मकर संक्रांति पर पतंग का उत्स्व
पतंग उड़ाना शुभ संकेत माना जाता है, लोग इस दिन अपनी छत पर आकर पतंग उड़ा कर खुशिया मनाते है। सूर्य की धुप शरीर पर पड़ने से शरीर में चुस्ती फुर्ती आती इसलिए भी लोग पतंग उड़ने का महोत्स्व मनाते है।
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मकर संक्रांति की पूजा कैसे की जाती है ?
- सर्वप्रथम प्रातः काल स्नान करने से पूर्व महापुण्य काल का शुभ मुहूर्त ज्ञात करें।
- अपने घर के मंदिर को अच्छे से साफ कर गंगाजल का छिड़काव करें।
- भगवान सूर्य को सिंदूर, लाल फूल, तिल, चावल, चढ़ाकर साथ ही ‘‘ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः’ सूर्याय नमः मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव को ताम्बे के जलपात्र से जल अर्पित करें।
- उसके बाद एक पूजा की थाली में जिसमें केले, सफेद तिल के लड्डू, और कुछ पैसे रखें।
- साथ ही थाली में भोग के लिए खिचड़ी और उसकी सामग्री चावल,उड़द, मूंग दाल, आदि भी डालें
- दिया और धूपबत्ती जलाकर भगवान विष्णु की आरती करें।
- भगवान विष्णु और तिल के लड्डू के रूप में समर्पित करें और हो सके तो पंडितों या ब्राह्मणों को यह सामग्री दान करें।
- जरूरतमंद और गरीब दुखियारों को दान करें और हो सके तो उन्हें भोजन भी कराएं।
मकर संक्रांति के दिन क्या ना करें ?
- बिना स्नान करें खाना ना खाएं।
- तामसिक भोजन ना करें सिर्फ सादा और तिल खिचड़ी का ही सेवन करें।
- इस दिन मदिरापान, सिगरेट, गुटका, तंबाकू पदार्थ का सेवन ना करें।
- सूर्य की कृपा पाने के लिए बाद के बाद भोजन करें।
- भिखारी ब्राह्मणों को खाली हाथ न जाने दे
- सूर्यास्त के बाद भोजन न करे।
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आपने क्या सीखा
मकर संक्रांति वैज्ञानिक और पौराणिक आधार दोनों पर ही काफी महत्व रखता है। उम्मीद है हमारे इस आर्टिकल से आप इस पर्व के बारे में जान चुके होंगे।
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आशा करते है, मेरे द्वारा दी गयी Makar sankranti 2023 के इस आर्टिकल से आपको महत्वपूर्ण जानकारी मिली होगी।
मकर संक्रांति से जुड़े सवाल
मकर संक्राति 2023 पूजा मुहूर्त कब है ?
- मकर संक्रांति: 2023 तिथि : 15 जनवरी 2023
- पुण्य काल मुहूर्त: 07:15:13 से 12:30:00 तक
- अवधि: 5 घंटे 14 मिनट
- महापुण्य काल मुहूर्त: 07:15:13 से 09:12:13 तक
- अवधि: 02 घंटे 0 मिनट
- संक्राति आरंभ: 14 जनवरी 20:21:45
Makar sankranti Date (2023) कब है।
मकर संक्रांति 2023 में 15 जनवरी, रविवार को है।
What is Makar sankaranti in Hindi
सूरज के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है, एक संक्रांति से दूसरे संक्रांति के बीच का समय सौर मास कहते है,वैसे तो सूर्य संक्रांति लगभग 12 है, लेकिन इनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण मानी जाती है मेष, कर्क, तुला, और मकर।
मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है?
मकर संक्रांति हिंदू धर्म का सबसे अहम पर्व है, इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है
मकर संक्रांति की पूजा कैसे की जाती है?
- सर्वप्रथम प्रातः काल स्नान करने से पूर्व महापुण्य काल का शुभ मुहूर्त ज्ञात करें।
- अपने घर के मंदिर को अच्छे से साफ कर गंगाजल का छिड़काव करें।
- भगवान सूर्य को सिंदूर, लाल फूल, तिल, चावल, चढ़ाकर साथ ही ‘‘ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः’ सूर्याय नमः मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव को ताम्बे के जलपात्र से जल अर्पित करें।
- उसके बाद एक पूजा की थाली में जिसमें केले, सफेद तिल के लड्डू, और कुछ पैसे रखें।
- साथ ही थाली में भोग के लिए खिचड़ी और उसकी सामग्री चावल,उड़द, मूंग दाल, आदि भी डालें
- दिया और धूपबत्ती जलाकर भगवान विष्णु की आरती करें।
- भगवान विष्णु और तिल के लड्डू के रूप में समर्पित करें और हो सके तो पंडितों या ब्राह्मणों को यह सामग्री दान करें।
- जरूरतमंद और गरीब दुखियारों को दान करें और हो सके तो उन्हें भोजन भी कराएं।
मकर संक्रांति के दिन क्या खाना शुभ होता है?
मकर संक्रांति के दिन सफ़ेद तिल, गुड़, खिचड़ी, दही-दूध, पोहा इत्यादि खाना शुभ मन जाता है।