विक्रमादित्य का जीवन परिचय, इतिहास | Vikramaditya history in Hindi-2023

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(Vikramaditya History in Hindi – Biography, Family, Birthyear, Birth Place, wife, Empire in Hindi)

भारत समय की रेत में खोए हुए महान राजाओं की भूमि है। ऐसे ही एक सम्राट थे सम्राट विक्रमादित्य, जिनकी राजधानी उज्जैन थी। विक्रमादित्य परमार वंश से थे। विक्रमादित्य के कारनामों और वीरता , कृपालुता और न्याय के कहानियों के रूप में लोककथाओं के माध्यम से पारित किया गया है। सिंहासन बत्तीसी और बेताल पच्चीसी महान में राजा विक्रमादित्य के कारनामों के बारे में कई साड़ी व्याख्याए की गयी है। आइये जानते है है, सम्राट विक्रामिदत्य के इतिहास, जीवन परिचय, साम्राज्य के बारे में।

Vikramaditya history in Hindi – विक्रमादित्य का जीवन परिचय, इतिहास

राजा विक्रमादित्य के जन्म को लेकर इतिहास में कई जानकारियां है, परन्तु इसमें से सबसे ज्यादा प्रचलित यह है की उनका जन्म 102 ईसा पूर्व हुआ था। कई किवदंतियो का ये कहना है की उनके पिता गर्दभिल्ला को शको ने मार कर उनका राज्य हड़प लिया था। 

विक्रमादित्य ने शको से कठिन लड़ाई लड़ कर पूरा साम्राज्य वापिस हासिल कर लिया 57 ईसा पूर्व में शकों पर यह जीत विक्रम संवत की शुरुआत का प्रतीक है। विक्रम संवत आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला हिंदू कैलेंडर है।

इसलिए उन्हें चक्रवर्ती सम्राट महाराज विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता था, उनके राज्य में कभी भी सूर्यास्त नहीं होता था। उन्होंने हिंदू धर्म का परचम पूरे विश्व में लहराया उन्हीं के कारण सनातन धर्म में लोग अपनी आस्था को बरकरार रखने में अभी तक सक्षम है। उनके राज्य में भारत को सोने की चिड़िया माना गया था।

सम्राट विक्रमादित्य बचपन में विक्रम सेन  के नाम से भी जानते थे, उनके पिता का नाम गंधर्व सेन और माता का नाम स्वामी दर्शना था उनके एक भाई भृतहरि और एक बहन ( गन्धर्व) था। 

 महाराज विक्रमादित्य की 5 पत्नियां थी जिनका नाम मलावती,मदन, लेखा, पद्मिनी और चिलम महादेवी थी, महाराज के 2 पुत्र विक्रम चरित्र और विनयपाल साथी उनकी दो पुत्रियां विधिमत्ता और वसुंधरा थी, उनके भांजे का नाम गोपीचंद था।

उनके प्रिय मित्रों में सबसे आगे भट्टमात्र का नाम आता है। महाराज विक्रमादित्य के राज में राजपुरोहित त्रिविक्रम तथा समृद्धि थे और उनके सेनापति विक्रम शक्ति और चंद्र थे जो हमेशा राजा के विश्वशनीय थे।

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विक्रमादित्य की गौरव गाथाएं 

कई लोगो का ये मानना भी है, की सम्राट विक्रमदित्य के शाषनकाल में जिस व्यक्ति ने अपना समय बिताया वे सभी भग्यशाली थे और मृत्यु के बाद सभी को स्वर्ग की प्राप्ति हुई, राजा विक्रमादित्य को सबसे दयालु और कर्तव्यनिष्ठ माना जाता था। 

वह अपने प्रजा के कल्याण के बारे में हमेशा सोचते रहते थे। इसलिए जब उन्हें समय मिलता था वह अपने साम्राज्य में भेष बदलकर अपनी प्रजा के कष्टों को जानने के लिए भर्मण करते थे। आज विक्रमादित्य लोकप्रिय राजाओं में सबसे सर्वोपरि माने जाते थे। 

उन्होंने पवित्र हिन्दू धर्म को हमारे बीच में फैलाया और अपने देश के सूर्य से भी तेज विद्वानों को भेज कर हमारे धर्म का और शिक्षा का प्रकाश फैलाया। उनकी कई गौरव गाथाएं लोगो के बीच में प्रसिद्ध है। इनमे से कुछ इस प्रकार है। 

बृहत्कथा 

सम्राट विक्रमादित्य एक उदार हृदय के राजा के नाम से प्रसिद्द है, उनके निष्पक्ष न्याय की प्रसिद्धि पूरे विश्व में फैली हुई थी। इसलिए देवता भी न्याय करवाने के लिए विक्रमादित्य के दरबार में आते थे। बृहत्कथा में उनके न्याय के बारे में सबसे चर्चित कथा ये है की एक बार इंद्र की सभा में दो अप्सराओ रम्भा और उर्वशी के बीच प्रतियोगिता का आयोजन रखा जिसमे इंद्र और समस्त देवी-देवता दे पर किसी भी निर्णय पर पहुँच पाए। 

इंद्र अपनी समस्या को राजा विक्रमादित्य के पहुँच गए राजा ने दोनों फूलो के गुच्छो पर बिच्छू को बिठाते हुए नृत्य करने को कहा और बोले की बिच्छू को तकलीफ न हो। रम्भा को नृत्य करते समय बिच्छू ने कई बार काट लिया वही उर्वशी के नृत्य के बीच एक बार भी बिच्छू हिला नहीं राजा के इस सूझ-बूझ भरे न्याय को देख इंद्र प्रसन्न हुए और उन्हें 32 बोलने वाली मुर्तिया प्रदान की जो सिंहासन बत्तीसी की कहानी में उल्लेखित है।

सिंहासन बत्तीसी 

कहा जाता है, की राजा विक्रामिदत्य का सिंहासन कोई आम सिहासन नहीं था बल्कि उसे देवताओ ने भेट में दिया दिया था जिस पर माँ पार्वती के 32 अप्सराओं सिंहासन में बसने का को श्राप दे दिया। 

सिंहासन बत्तीसी पर एक और कहानी का उल्लेख जिसमे एक बार उज्जैन के राजा भोज के साम्राज्य में एक किसान के खेत में 32 मूर्तियों वाला एक सिंहासन प्रकट हुआ।

किसान ने सिंहासन को राजा के दे दिया जब राजा भोज सिंहासन पर बैठने चले तो एक-एक कर सभी पुतलियों ने राजा से यह सवाल पूछे ताकि उन्हें विक्रमादित्य के समान बैठने योग्य हुए या नहीं। परन्तु राजा भोज ने सभी पश्न का सही उत्तर देते हुए सिंहासन पर बैठ गए।

32 मूर्तियों के नाम

 यह नाम कई ग्रंथों में अलग नाम से भी जाने जा सकते हैं।

रतन मंजरी मधुमालती विद्यावती त्रिनेत्री
चंद्रलेखा प्रभावती तारावती मृगनयी
चंद्रकला त्रिलोचना रूपरेखा मलयवती
लीलावती पद्मावती ज्ञानवती वैदेही
कामकंदला  कृतिहृति चंद्र ज्योति मानवत्ति
रविकामा सोनियाना अनुरोध वती जय लक्ष्मी
कौमुदी सुन्दरवती धर्म गति कौशल्या
पुष्पवती सत्यवती कर्णावती रानी रूपमती
Vikramaditya history in Hindi |विक्रमादित्य का जीवन परिचय का वीडियो 

बेताल पच्चीसी 

दोस्तों, विक्रम बेताल का सीरियल हर किसी ने जरूर देखा होगा विक्रमादित्य का ये सबसे प्रसिद्द कथा ग्रन्थ है। जो की ये भी उनके न्याय को दर्शाता है। इस ग्रन्थ में कुल पच्चीस भाग है, जिसमे एक भूत की पच्चीस कहानियां मौजूद है।

इस कहानी में एक संत के कहने पर राजा विक्रमादित्य को एक पेड़ पर लटके बेताल (भूत) से एक शब्द भी बिना बात करे लेकर घर आना था। परन्तु बेताल बहुत चालाकी से विक्रमादित्य को कहानी सुनाता और अंत में कहानी को एक पहेली के साथ ख़त्म करता और कहता यदि पहले का सही उत्तर नहीं दिया तो उसका सर फट जायेगा राजा इसका सही उत्तर देते जिससे संत की शर्त टूट जाती और बेताल वापस उसी पेड़ पर बैठ जाता। बेताल ने राजा को 24 बार कहानी सुनाई परन्तु पच्चीसवी कहानी बहुत लम्बी थी और सुनते सुनते राजा घर पहुँच गए और बेताल के सवाल से भी बच गए। 

महाराज विक्रमादित्य का साम्राज्य – Vikaramaditya Empire

 इतिहासकारों का मानना है कि उनका सम्राट भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा आसपास के देश अरब, इराक, ईरान, अफगानिस्तान, तक फैला हुआ था।

अरब में साम्राज्य की पूरी व्याख्या अरबी कवि जरा मिंतोई ने अपनी पुस्तक संकुल में किया है, इस पुरतक में विक्रमादित्य के साम्राज्य को मिस्र तक फैले होने की भी पुष्टि की है।

उनके साम्राज्य की सीमाओं के उल्लेख Turkey के म्यूजियम में शिलालेख पर वर्णन किया है, जिससे साबित होता है की उनका साम्राज्य Turkey में भी फैला हुआ था।

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विक्रमादित्य के नवरत्न

महाराज विक्रमादित्य ने अपने सभा में नवरत्नों को रखने का प्रचलन सर्वप्रथम किया था उनको देखकर ही आने वाले  राजाओं ने भी अपनी सभाओ में नवरत्नों को रखने का प्रचलन हुआ उनके नवरत्न धनवंतरी, क्षणपक, अमर सिंह, कालिदास, वैतालभट्ट, शंकु, वररुचि, घटकर्पर, और वराहमिहिर थे। ये सभी नवरत्न अपने क्षेत्र में माहिर और विद्वान थे 

धनवंतरी:- राजा विक्रमादित्य के दरबार में ध्वांतरि एक आयुर्वैदिक वैद्य थे जिन्होंने एक बार विक्रमादित्य गंभीर रूप से घायल हो चुके थे उनके बचने की कोई आशा नहीं थी लेकिन वैद्य धन्वंतरि ने अपनी चमत्कारिक औषधी से राजा विक्रामिदत्य के प्राण बचाये थे। तब  के उन्होंने कई सारे ग्रंथ भी लिखे महाराज विक्रमादित्य की सभा में नौरत्न में से एक थे। वर्तमान में यदि किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर की प्रशंसा के रूप में उन्हें धन्वंतरि की उपमा देते है ।

क्षपणक:-दूसरे रत्न क्षपणक थे, जो एक सन्यासी मने जाते थे, वह बौद्ध धर्म के अनुयायी थे क्षपणक द्वारा भिक्षाटन और नानार्थकोश जैसे ग्रंथो को लिखा गया जिनका उद्देश्य मानवजाति को सत्य, अहिंसा और सदैव धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

अमर सिंह:-धरती पर यदि कोई विद्वानों के बारे में बात करे तो अमर सिंह का नाम सर्वोपरि रखा जाता था क्योंकि राजा विक्रमादित्य के नवरत्न में वह एक महान विद्वान थे बिहार के बोधगया के शिलालेख में वर्णन है की बोधगया का मंदिर उन्ही ने निर्माण करवाया था, अमरकोश नमक ग्रन्थ उन्ही ने बनवाया था, कहा जाता है की यदि उस समय यदि कोई इस ग्रन्थ को पढ़ ले तो वह महान पंडित माना जाता था।

शंकु:- सम्राट विक्रमादित्य के राज्य में नीति शास्त्र के सबसे बड़े ज्ञानी शंकु को ही कहा जाता है वह एक रस आचार्य थे जिनका पूरा नाम शङ्ग्कूक था,  जिनका काव्य ग्रंथ भुवनाभ्युदम बहुत प्रसिद्ध है।

 

वैतालभट्ट:- इन्हे बेतालभट्ट के नाम से जाना जाता था, ये एक धमर्गुरु (धर्माचार्य) थे, विक्रमादित्य को 16 छंद नीती आचरण सीखने वाले वैतालभट्ट एक महारथी योद्धा थे, उन्हें सम्राज्य के द्वारपाल भी कहते थे, सम्राट विक्रमादित्य के साथ सदैव रहना उनका मुख्य कार्य था। युद्धनीति में महारथ होने साथ वह एक लेखक भी थे , जिन्होंने विक्रम बेताल, वेताल पंचवटी जैसी लोकप्रिय कहानी लिखी थी।

घटकर्पर:- विक्रमादित्य के नवरत्नों में घटकर्पर को संस्कृत विद्वान माना जाता था, उनके जैसा सांस्कृतिक विद्वान कोई नहीं था, कई लगो का कहना था की यदि उन्हें अनुप्रास  और यमक में कोई परास्त कर दे तो वह फूटे हुए घड़े से पानी भरेंगे। 

कालिदास:- नवरत्नों में से राजा विक्रमादित्य के प्रिय और सबसे प्रसिद्ध कालिदास ही थे, कालिदास एक संस्कृत महाकवि थे, उनकी कविताये और कहानियां काफी रोचक है। माँ काली की तपस्या से प्रसिद्धि हासिल करने वाले कालिदास की एक झलक शकुंतलम जैसे नाटक में देखा जा सकता है।

वराह मिहिर :- महृषि वराह मिहिर एक ज्योतिषशस्त्र के ज्ञानी थे उन्होंने राजा विक्रमादित्य के मृत्यु की भविष्वाणी जन्म से ज्ञात थी दिल्ली में स्थित विष्णु स्तम्भ का निर्माण उन्होंने ही करवाया था बाद में मुगलो ने इसे तोड़कर क़ुतुब मीनार बनवा दिया।

वररूचि:- वररूचि एक कवि और व्याकरण के ज्ञाता माने जाते थे उन्हें शास्त्रीय संगीत का पूर्ण ज्ञान था कालिदास की भांति इन्हें भी काव्यकर्ताओ में एक माना जाता था। 

निष्कर्ष – Conclusion 

भारत की पावन धरती पर कई राजा ऐसे भी पैदा हुए, जिनके जीवन की गौरव गाथाएं हमे अच्छा इंसान बनने को प्रेरित करती है, दुर्भाग्य से, हमारे इतिहास की पाठ्यपुस्तकें भी इनमें से कई महान राजाओं, सम्राटों, राजवंशों और साम्राज्यों की उपेक्षा करती हैं। इससे आने वाली पीढ़ियां ऐसे महापुरूषों से हमेशा अंजान ही रहेंगी। इसलिए, यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि हम अपने युवाओं को भारत के नायकों से अवगत कराएं।

Vikramaditya history in Hindi के आर्टिकल की मदद से आपको महान चक्रवृति सम्राट महाराज विक्रमादित्य के बारे में पूरी जानकरी विस्तार से दी जा रही है उम्मीद करता हूँ ! आपको मेरा इस आर्टिकल पसंद आया होगा कमेंट करके जरूर बताये।

 

विक्रमादित्य से सम्बंधित पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

 

Q.1 विक्रमादित्य के नवरत्न के नाम क्या थे ?
Ans:-विक्रमादित्य के नवरत्न के नाम धनवंतरी, क्षणपक, अमर सिंह, कालिदास, वैतालभट्ट, शंकु, वररुचि, घटकर्पर , और वराहमिहिर थे। 
 
Q2. विक्रमदित्य के पिता का नाम क्या था ?
Ans:-विक्रमादित्य के पिता का नाम गंधर्व सेन था।
 
Q3. विक्रमदित्य की माता का नाम क्या था ?
Ans:-विक्रमदित्य की माता का नाम स्वामी दर्शना था।
 
Q4. सम्राट विक्रमादित्य के पुत्र का नाम क्या था ?
Ans:- सम्राट विक्रमादित्य के दो पुत्र विक्रम चरित्र और विनयपाल था।
 
Q5:- विक्रमादित्य का जन्म कब हुआ था ?
Ans:-विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे जिनका जन्म 102 ईसा पूर्व में हुआ था।
 
Q6. विक्रमादित्य का क्यों प्रिसद्ध है ?

 Ans:- विक्रम बेताल की कहानियों से 

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